इस प्रसिद्द दोहे का अशुद्ध रूप सहज में ही बोल देते हैं .... "राधे तू बड़भागिनी , कौन तपस्या कीन्ह । तीन लोक तारन तरन , सो तेरे आधीन ॥ "
इस दोहे में एक शब्द "बड़भागिनी" सर्वथा अनुचित व अशुद्ध है अतः हमें शुद्ध का ही उचित प्रचार करना चाहिए । अब पढ़िए ....
"श्री राधे तू बड़ी "भांवरी" , कौन तपस्या कीन्ह । तीन लोक तारन तरन , सो तेरे आधीन ॥ " ……
(ब्रज के एक रसिक का भाव )
जय जय श्री राधे !
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