"हमारी "प्रतीक्षा" ही प्यारे प्रभु की "परीक्षा" है ।
विरह ही प्रेम की जागृत गति है ।
संत श्री "हरेकृष्ण" जी का प्यार भाव :-
"लखते लखते ब्रजमंडल को , रटते रटते भए बरस अठारा ।
पर हाय अभी तक पूर्णतया , नही दीख पड़ा मनमोहन प्यारा ॥
अनुराग का यज्ञ समाप्त करून , इस देह की अंतिम आहुति द्वारा ।
नंदलाल के प्रेम में पागल हूँ , नहीं और किसी विपदा का मारा ॥ "
पर हाय अभी तक पूर्णतया , नही दीख पड़ा मनमोहन प्यारा ॥
अनुराग का यज्ञ समाप्त करून , इस देह की अंतिम आहुति द्वारा ।
नंदलाल के प्रेम में पागल हूँ , नहीं और किसी विपदा का मारा ॥ "
तथा मृत्यु से पूर्व प्यारे श्री राधा-माधव युगल सरकार सम्मुख थे। …
जय जय श्री राधे !
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